"मेरे रंग से"

आज उस बात का एहसास हो रहा है कि, मैंने एक गलत इंसान के सामने अपने ये आंसू निकाले। लेकिन करता भी किया ,उस समय  हालात भी ऐसे थे खेर ,अब कर भी किया सकते हैं ।
आज २० साल होने को आए हैं , और आज भी एक सवाल मेरे जहन में ऐसा चुभोता है, एक... जैसे खंजर किसी मांस के लिथड़े काट रही हो ,बस उसी तरह ! मेरा वो एक सवाल मेरे जहन को काट रही है ।
खैर...... इन बातों में अब किया रखा हैं , कभी, कभी ना जब हम अपने आप से बात कर रहे होते हैं ना , यहीं अपने छत पे टहेलते समय , तब मेरे एहसास उन सिगरेट के धुएं कि तरह हो जाती है,जो कुछ देर तक दिख तो रही होती है सफेद चादरों की तरह ,पर कुछ समय के उपरान्त ओझल हो जाती  है ।
रवि सरकार तुम्हें याद हे न ,  वो   "काली डायरी" ।......   हाँ , जो वो दंगे की रात उस छोटे से झोले में रखी हुई थी और ...वो  ...
बस, बस रवि सरकार .... तुम तो इमोशनल होते जा रहे , उस दंगे की रात को लेकर।
सरकार जी , काश उस दंगे की रात को अपने इस कलम से "काश" य "पूर्ण विराम" लगाने की शक्ति होती तो लगा देता ,तो आज कुछ और ही इतिहास होता ।

मेरी किताब के कुछ अंश।
"मेरे रंग से"।.......
(पीयूष)

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