कब तक?
क्या कहुँ क्या नहीं, मेरे समझ से बाहर है अब......
उस समय कैसी तड़पी होगी प्यारी सी जान उसका दर्द, उसकी चीखें, उसने कोनसी छोटी स्कर्ट पहनी थी ?,उसने कोनसी समाज मैं गलती कि थी?
जिसका खामियाजा उसे भरना पढ़ा |
फर्क लड़कियों के छोटे कपड़ों पे नहीं तुम जैसे मदारजातों मैं आगयी है|
रमज़ान के पाक महीने पे ये बाल हत्या करके तेरा कलेजा नहीं काँपा, तेरे शरीर मैं इतनी ही गर्मी थी मादरजात तो खोलते हुए आग मैं कूद जाता , उस बेचारी छोटी सी जान पे, ऐसे करते हुए अपने खुदा से भी नहीं डरा,
क्या कहुँ मैं और किस्से कहुँ, मन मैं गुस्सा मन मैं गालियाँ उस मादरजात के लिए पनप रही है....
जब ये सब सुनता हूँ किसी ना किसी के माध्यम से मेरी हिम्मत तक नहीं होती कि उस विषय के बारे मैं बोल जाए हम.... आज भी लिखने के लिए कोई शब्द नहीं आरहे कि ऐसे लोगों के बारे मैं क्या लिखे |
और लिख कर भी क्या फायदा कोनसी हमारी आवाज़ को एक आवाज़ मिल जायेगा जिससे उन मादरजात को सरेआम बीच चौरहा पे लटका के तड़पा तड़पा के उसी तरह मारा जाए जिस तरहा से...... लेकिन ये सब भी अगर होजाए.... आखिरी मैं बस एक सवाल हमारा
क्या वो प्यारी सी जान जिन्दा वापस आएगी?
बलात्कार किये जाने और
शीशा तोड़कर सर के बल निकलने में
और कोई फर्क नहीं, सिवाय इसके कि
तुम डरने लगती हो
मोटर गाड़ी से नहीं, बल्कि मर्द ज़ात से
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