प्रेम क्या है?
प्रेम क्या है?
प्रेम एक गहरा और खुशनुमा एहसास है। जब किसी से प्रेम होने लगता है तो रिश्ते की शुरूवात में हम अक्सर सिर्फ सकारात्मक चीज़ें ही देखते हैं, और सातवे आसमान में महसूस करते हैं।
वक़्त के साथ प्रेम की शुरुवात वाला एहसास बदलने लगता है। और अब ये एहसास पहले से गहरा, मजबूत, होने लगता है अब आप उनसे प्रेम करने लगते हैं।
प्रेम अलग अलग चरणो में विकसित होता है। पहले शारीरिक आकर्षण का दीवानापन, फिर स्वप्नलोक, फिर मजबूत लगाव और उसके बाद दौर आता है गहरे प्रेम का जो अक्सर उम्र भर तक रहता है।
लेकिन आज कल के दौर में यह बट चुंका है, आज कल तो प्रेम
कोढियों के दाम में बिक रहे है
जैसे ,
ग्राहक दुकानदार से : भाईसाहब वो वाला प्रेम कितने का होगा ,
दुकानदार : 50 हाजार कमाता है , बाकी भाव कुछ ज्यादा है ।
ग्राहक : 50 और इतना भाव ! भैया कोई और दिखाईये न अच्छा.....
वो , बगल वाला कैसा होगा ?
दुकानदार : ये वाला 10 करोड़ का लेकिन दारू ,शराब बहुत पिता है ।
ग्राहक : अरे ! बाबा चलेगा इस वाले प्रेम को पैक कर दो ।
तो , कुछ ऐसा हि दौर चल रहा है आज कल .....और हमने अपनी ज़िन्दगी इन दुकानदारों और ग्राहकों की तरहा कर लिया है।
और यही उदाहरण हम अपने
रिश्तों में लाकर खड़ा कर दे रहे है।
खैर ..... हम एक प्रेम के रिश्ते में
आ तो जाते पर कुछ लोग निभा नही पाते ।
संत कबीर जी ने बहुत ही
खुबसूरती से प्रेम कि परिभाषा दि है ।
"घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, वह तो प्रेम न होय
अघट प्रेम ही हृदय बसे, प्रेम कहिए सोय"
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