डर लगता है
डर लगता है अब ,जब घर से निकलती हूँ
सुनती हूँ जब वो खबरे
सोचने मे मजबूर हो जाती हूँ , कैसे तड़पी होगी उसकी आह, उसकी सिसकियाँ ,उसकी दर्द उसकी घुटन |
अपने आप से कैसे लड़रही होगी उस समय ,
क्या सोच रही होगी , क्या केहरहि होगी
क्या समझ रही होगी ,
शायद हम लोगों मे से कोई समझ नहीं सकता क्योंकि हम लोगो मे से कोई उस जैसा ,कभी तड़पा नहीं होगा
सोशल मिडिया पे जस्टिस फॉर ऑल गर्ल्स का बैनर लगाकर सेल्फी लेना विथ स्माइल शायद यही होगा तुम्हारा सो कोल्ड इन्साफ़
ये मोमबत्तियां जलाकर किया तमशा बनारखे हो
इसकी रोशनी इतनी तेज है की सत्ता के गलियारों मे बैठे लोगो को भी नहीं दिखाई देता ,
उसकी आह, उसकी सिसकियाँ ,उसकी दर्द ,उसकी घुटन |
उसकी मौत का तमाशा न बनाओ , वो तो खुद अब एक मूर्ति बन गयी है जिसे अब कुछ फर्क नहीं पड़ता
क्या तुम्हे दिखाई नहीं देता , क्या तुम्हारे घर इतने बड़े हो गए है , क्या तुम्हारे घर मे खिड़किया भी नहीं जिसमे झांक कर हमे देखसको हमारे उस दर्द को देखसको
लेकिन उसकी भी कोई उम्मीद नहीं कोई गुंजाइश नहीं |
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