आवाज़ दो

आवाज़  दो
मेरे शब्द निशब्द हो गये है
अजीब उलझन
अजीब से बाते
नहीं निकलता हास्य  का वो रस
नहीं समझ रहा तू
आवाज़ दो
पीड़ा कुछ भी नहीं पर थामा हुआ हूँ उसको
खुद को खुद से ही समझा रहा हूँ
आवाज़ दो
कभी सरल तो कभी कठिन हो जारहा
साथी से साथ नहीं बढ़ा पढ़ा रहा
हूँ में कौन ,और क्यों इसी में उलझा हुआ हूँ
विशालकाय तुम्हारे पास हर सवाल के जवाब है
पर मुझे पूछना बार बार नागवारा सा लगरहा
अवाज़  दो
क्यों खुद को खुद से सिमटा हुआ जकड़ा हुआ पता हूँ
आवाज़  दो
मन बूढ़ा सा लगरहा
आवाज़  दो
देखो चीला रहा हूँ अंदर ही अंदर
आवाज दो,  आवाज़ दो ,आवाज़ दो,  आवाज़ दो

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