बाबा जी और उनके पांच मणि

बाबा जी और उनके पांच  मणि

बाबा ऐसे इंसान थे किसी से एक रुपए की सेवा नहीं लेते थे बात परिवार की हो या बाहर की किसी से भी नहीं जब टहलने जाते थे मैं भी उनके साथ रहता था, उनका हाथ पकड़ लेता था, धीरे से वो हाथ छुड़वा लेते थे बोलते थे मरीज़ थोड़ी ना हूँ जो हाथ पकड़ रहे हो, अभी मैं बहुत दूर तक चल सकता हूँ उतने तुम थक जाओगे, मैं भी कहता हाँ अभी तो आप जवान है, मुस्करा के बोलते "और क्या" हाँ उनकी पैदल चलने की आदत बहुत थी, चलते रहते, चलते रहते पैदल चाहे जितना चला लो.... सर पे रुमाल या कोई गमछा  बाँध लेते थे फुल शर्ट, पैंट और हाथ मैं घड़ी और लेफ्ट राइट करते चले जाते थे..... 
और अपनी आर्मी के दिनों की कहानी बताने लगते 
जब वो गुस्से मैं होते तो पहले पहले बिल्कुल शांत रहते फिर जब मिलते तब शुरू होता........ 
मतलब उनके चहेरे पर एक तेज हमेशा से पाया, एक होता है ना की एक शेर की तरहा रहना कुछ भी होजाये एक असली मर्द की तरहा खड़े रहना हाँ किसी की हिम्मत नहीं होती थी की उनके सामने कुछ बोल सके, उनके हाथ मैं पहले की तरहा ताकत थी और वही भारीपन हाथों मैं,  
रोज नियमानुसार सुबह 5 se 6 अपना योगा करना, उसके बाद एक कटोरी चना, मेथी छोटी कटोरी  1 गिलास पानी और उसके बाद टहलने चले जाना और गाओं मैं रहते तो खेत ही खेत नाप आते रात को उनकी एक आदत से बनगयी थी रोज रेडिओ पे समाचार सुनना यदि लखनऊ आते तो पहले टहलने निकलते तो पहले तुलसी बुआ (बाबा की बहन )के यहाँ उसके बाद छोटे पापा के यहाँ उसके बाद हमारे घर, जब कभी भी आते लखनऊ तो बड़े चाचा के यहाँ रुकते क्योंकि वो हमेशा जिक्र करते थे हमसे  "ब्रह्मानंद ने बड़ी सेवा की तुम्हारी दादी का और... मेरा तो कर ही रहा है " बड़े चाचा की जिक्र करके और आगे बोलते है की.... "अगर ब्रह्मानंद ना होता तो विवेका ( 2nd छोटे पापा ) का बचना मुश्किल होता जो उस टाइम ब्रह्मानंद ने किया उसके लिए कोई शब्द नहीं है " 
और यही सचाई है बाबा, दादी से लेकर गाओं के घर तक उनकी ही देन है जो बाकि काम होते गए वरना कुछ ऐसी जटिल समस्याआएं  भी थी की हो ही ना पाता, मगर उनके होते ही सभी काम संभव भी होते गए..... 
फिर एक रोज हमने पूछा बाबा से "बाबा अापने फिर सभी अपने बच्चों को लखनऊ कैसे भेजा (बहुत सालों की बात है ) तब बाबा ने बोला घर का कोई एक बच्चा लायक निकल जाए तो बाप की सारी चिंता खत्म हो जाती है और वो है हमारे बड़े पापा श्री दयानंद पाण्डेय जी बाबा आगे बोले  "दया ने पूरा परिवार संभाल लिया सभी भाइयों को सेटेलेड कर दिया आज जो सब लखनऊ मैं इतनी अच्छी ज़िन्दगी जी रहें है वो सिर्फ दया की बदौलत ही वो ना रहते तो तुम लोग भी गाओं मैं रहते वो उस काबिल है तभी पूरा परिवार आज यहाँ अपनी अपनी ज़िन्दगी जी रहें है" और यही सच्चाई है उन्ही की देन है जहाँ हम लोग आज अपनी अपनी लाइफ मैं खुश है तो वही एक ही है और वो है हमारे बड़े पापा..... 
चीजें दिखने मैं जितना आसान होता है उतना उसके पीछे कितना संघर्ष होता है....जो की एक ना एक दिन सबको दीखता ही है.........
छोटे पापा के बारे मे बाबा बोलते थे की "विवेका के अंदर सेवा भाव है" उन्होंने बड़े बुजुर्ग लोगों की खूब सेवा की है  
हमारे पिता जी के बारे मैं कहते थे की "वो महेनती है अपने बात  वयवहार  से ना जाने कितने लोगों की मदद किया एक रुपए की लालच नहीं उसके मन मैं,कर्मठी है अपने शरीर अपने वयवहार से जितना होसकता है उसने सबका देख भाल किया जब,जब किसी को जरुरत पढ़ी तब तब परमा वहाँ मौजूद रहें हाँ किसी की भी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे लगे रहते थे, बाबा बोलते है आगे अगर परमा के पास अथाह कोई चीजी रखी हो खूब मन से बाट देंगे कोई भेद भाव नहीं रखता है मन से सेवा किया सबका " बात करें अगर उनके लाडले बेटे की तो वो हैं हमारे और सबके प्यारे छोटे चाचा अभी भी सबके लाडले ही है, 
बाबा कहते थे वो पहले भी बच्चा था आज भी बच्चा ही है , सबसे ज्यादा इमोशनल, घर के सभी बच्चों से फ्रेंडली और घर के सभी बच्चों के लिए उनको चिंता लगा रहता था और है भी अब घर के छोटे बच्चे होते  ही  है सबसे लाडले, बाबा बोलते थे की "नित्या हमारी बात को कभी टालता नहीं है  ना कभी उसने तर्क, वितर्क किया हमसे उसने तुम्हारी दादी और हमारे लिए अपने बीवी को हमारे पास छोड़ दिया ताकि देख रेख होसके गाओं मैं और अब देखि रहें हो कितने सालों  से वो गाओं मैं मेरी सेवा करही ही रही है  अब एक रोज दुनियाँ दरी की बात होने लगी हॉस्पिटल मैं एडमिड थे उसी दौरान एका, एक बोले हमारी  पांचों भहुएँ सबसे अच्छी है आजकल के समाज को देखते हुए बोले सब मान रखती है ठीक है सब के सब.... खैर आगे अभी और भी है किस्से  बाबा के संघर्ष को लेकर कैसे कठिन परस्थितियों से उठकर उन्होंने अपना एक औरा बनाया एक अपना जहाँ बनया.....

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