कृष्ण

(कृष्णा )

                    (मेरे कलम से लिखें कुछ अंश )

जो लोग कहते है की मैं कृष्ण का भक्त हूं और मैं उनकी तरहा बनना चाहता हूं, तो कृष्ण बनना भी कहाँ आसान है। अगर आप कृष्ण की ज़िन्दगी के पन्नों को पलट, पलट कर एक,एक पन्ना पढ़ना शुरू भी करते है तो पता चलेगा की हाँ वाकई "कृष्ण बनना भी कहाँ आसान है।"
माँ के गर्भ से आए प्यारे नटखट लाल "मारो कृष्ण" 
सारे देवी देवताऐं  खुशियाँ बना रहे, लेकिन देखा जाए 
तो कृष्ण की ज़िन्दगी शंघर्षों से भरी पढ़ी हुईं थी।  
जन्म जेल मैं हुआ, सगी माँ से बिछड़ कर दूसरी माँ के गोद में गए, और उस सगी माँ का प्यार नसीब ही नहीं हुआ। 
फिर कुछ और बड़े हुए तो कंश की नज़र कृष्ण पर पढ़ी 
तो मेरे कृष्ण को  मारने के लिए कभी असुरों को भेजा तो कभी सापों तो कभी बड़े,बड़े तूफान के रूप भयानक अदृश्य ताकतें भेजी, ना राधा के प्रेम का सुख प्राप्त हुआ क्योंकि राधा को श्राप मिला था, ना उनके औलादों का प्रेम, उनके जीवन में देखा जाए तो सुख कहाँ था ही। 
              महाभारत के अंत में भी  कौरवों के माताश्री गान्धारी जी ने श्राप दिया माधव ने उसे भी स्वीकार कर  लिया।  महाभारत में लोग जब मरते थे, दर्द से चीखते थे, 
 तो वो दर्द और किसी की नहीं श्री कृष्ण के होते थे, जिस्म से खून की एक बूँद भी गिरती थी तो उसका दर्द कृष्ण को ही होता था। 
लेकिन इन सब में,वो हमेशा मुस्कराते ही थे, उनका वंश नाश हों गया तो भी मुस्कराते ही रहें, इतने दर्द, तकलीफे झेलने के बाद भगवान होते हुए भी खुद को को दर्द दिए, तकलीफ दिए, फिर भी जीवन भर उनके चहेरे पर मुस्कान ही रहता था। तो फिर हम लोग क्यों जरा,जरा बातों से परेशान हों जाते है। मैं अक्सर एक बात कहता हूं, सबके ज़िन्दगी में कहीं ना कही कृष्ण होंते तो है बस ढूढ़ने के जरुरत है,  किया पता वो श्री कृष्ण आपके भीतर (अंदर ) ही हों। 
तो फिर ढूंढो अपने श्री कृष्ण को मिलेंगे ज़रूर लेकिन तब,जब  तुम चाहोगे तब,...... 
 अपने अहंकार को त्याग दो, तेरा, मेरा छोड़ दो, पिता, माँ को तकलीफ ना दो, तब देखो तुम्हारे कृष्ण तुम्हे कहाँ मिलते है। 
राधे राधे~

पियूष~

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