मुझे लगता है की तुम आओगी पर शायद ये मेरा भ्रम हों
"की तुम आओगी", शायद वक्त के इस पड़ाव में तुम वो अफ़साने भूल चुकी होंगी,मेरे साथ बिताया वो फ्रेंडजोन वाले लम्हें, शायद इससे उभर भी चुकी होंगी,फिर कोई नई दोस्ती, फिर कोई तुम्हारे नए किस्से होंगे, कोई नई कहानी होंगी, शायद नए अफ़साने भी....पर मेरा भ्रम, मेरा भ्रम कहता है की दूर किसी पहाड़ी ठंडी हवा की तरहा तुम्हारा स्पर्श जैसा महसूस होकर, पहाड़ियों के बीच गिरते झरने की शोर की तरहा तुम्हारी आवाज़
भागती हुई मेरे पास आएगी शायद......
और तुम्हरा मुस्कराना दुनियाँ की सबसे खूबसूरत मुस्कराहटों में से एक होंगी, लोगों का तो नहीं पता, हाँ पर आज भी तुम मेरे लिए खूबसूरत और बेशकीमती शख्स हो।
सुनो, मुझे पता है, तुम्हे पहाड़ियां बहुत पसंद है, पहाड़ों के उन ऊचाईयों को छूना जैसे किसी बड़े मुकाम को हासिल करने जैसा तुम्हें लगता है।
अच्छा हाँ,मैं ठीक तो हुँ पर शायद नहीं, दुनियाँ के इस आवा, गमन में कभी,कभी मैं कहीं खो जाता हुँ, शायद इसलिए भी की तुम्हारे ना होने का भ्रम अब तक जकड़ा हुआ है अंदर से, अच्छा लेकिन अब अगर आना तो लौटकर जाने के लिए नही बल्कि जाकर हमेशा आने के लिए ,"वो वाला लौट कर आना" हाँ, हाँ बिल्कुल ठीक इसी तरहा,हम फिर से पहाड़ियों के वादियों मैं जाएंगे,दो पहाड़ियों के बीच के निकली गालियों से गुजरंगे , और उन ऊँचे पहाड़ियों पर खड़े हम अपने एक दूसरे के पकड़े हथेलियों को पकड़ कर हम बीते सर्दियों के लम्हें याद करंगे और सुनो कोशिश करंगे की एक दूसरे को समझेंगे ठीक
उन ऊँचे, ऊँचे पहाड़ियों की तरहा जो कई अरसों से अलग होकर भी आमने, सामने एक दूसरे के साथ खड़े है।
हम एक दूसरे के हिस्से के गम बाटेंगे उन बहते हुए आसुओं के साथ हम फिर से इस बिखरे,अधूरे कहानी को पूरा करेंगे
और अपने,अपने भ्रम को वास्तविकता का हार पहनाएंगे।
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