गुरुर का चादर

एक दिन घर वापसी जरुर होती है जब मन में बिछा गुरुर का चादर ओढ़ने से मना कर लेते हो और वो चादर खुद नहीं हटता,
वो चादर तब हटता है जब परिस्थिति आपके अनुकूल ना चले और उस समय सिर्फ आपके अपने माता पिता ही याद आते है, आपके अपने मित्र ही याद आते है, आपके अपने परिवार ही याद आते है।
सिर्फ एक दिन के लिए अपनी वास्तविक पहचान को मिटा कर देखो और अनजान शहर, अनजान लोगों के बीच रहे कर देखो,
गिद्ध की नजर और कुत्तो के दांत हमेशा नोंच खाने के लिए आपके लिए तैयार रहेंगे।
वक्त रहते हम अपने माँ, बाप की कद्र नहीं करते, अपने सच्चे मित्र की कद्र नहीं करते, अपने ही परिवार को एक अलग दृष्ठि से देखते है।
इस जीवन चक्र में जो जिसके साथ जैसा व्यव्हार करता है ठीक एक दिन वो घूम कर कहीं न कहीं तुम्हारे जीवन में आता ही है।
यह सत्य है पूरी तरह सत्य इसे हम कभी नकार नहीं सकते।
यह खुद का अनुभव भी है, देखा है हमने लोगों को की कैसे वो समय के मार से परेशान, हैरान, बिलखते, जूझ रहें अपने ही गुरुर के बिछे चादर में फसने के बाद।

-पीयूष पाण्डेय

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